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Archive for the ‘चिराग’ Category

>चिराग मांगते रहने का कुछ सबब भी नहीं
कैसे बताये कि अब तो शब भी नहीं

जो मेरे शेर में मुझसे जियादा बोलता है
मैं उसकी बज्म में इक हर्फ-ए-जेर-ए-लब भी नहीं

और अब तो िजन्दगी करने के सौ तरीके हैं
हम उसके हिज्र में तनहा रहे थे जब भी नहीं

कमाल शख्स था जिसने मुझे तबाह किया
खि़लाफ उसके ये दिल हो सका है अब भी नहीं

ये दु:ख नहीं कि अंधेरों से सुलह की हमने
मलाल ये है कि अब सुबह की तलब भी नहीं

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चेहरा मेरा था निगाहें उसकी
खामोशी में भी वो बातें उसकी

मेरे चेहरे पे गजल लिखती गयीं
शेर कहती हुई आखें उसकी

शोख़ लम्हों का पता देने लगीं
तेज होती हुईं सांसें उसकी

ऐसे मौसम भी गुजारे हमने
सुबहें अपनी थीं, शामें उसकी

ध्यान में उसके ये आलम था कभी
आंख महताब की, यादें उसकी

रंग जोइन्दा वो, आये तो सही
फूल तो फूल हैं, शाखें उसकी

फैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा
आंधियां मेरी, बहारें उसकी

खुद पे भी खुलती न हो जिसकी नजर
जानता कौन जबाने उसकी

नींद इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उसकी

दूर रहकर भी सदा रहती हैं
मुझको थामे हुए बांहें उसकी
जोइन्दा- जिज्ञासु

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>इश्क में भी मरना इतना आसान नही
जात को रद करना, इतना आसान नहीं

मुझमें ऐसी ही खामी देखी उसने
तर्क-ए-वफा वरना इतना आसान नहीं

एक दफा तो पास-ए-मसीहा कर जाये
जख़्म का फिर भरना इतना आसान नहीं

जाने कब शोहरत का जीना ढह जाये
पांव यहां धरना इतना आसान नहीं

मरने की दहशत तो सबने देखी है
जीने से डरना इतना आसान नहीं
जात- अस्तित्व
रद्- निरस्त
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क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
जख़्म ही ये मुझ लगता नहीं भरने वाला

उसको भी हम तिरे कूचे में गुजार आये हैं
िजन्दगी में वो जो लम्हा था संवरने वाला

उसका अंदाज-ए-सुखन सबसे जुदा था
शायद बात लगती हुई, लहजा वो मुकरने वाला

दस्तरस में हैं अनासिर के इरादे किस के
सो बिखर के ही रहा कोई बिखरने वाला

इसी उम्मीद पे हर शाम बुझाये हैं चिराग
एक तारा है सर-ए-बाम उभरने वाला।

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