> दा…दा…दा…करके बोलना शुरू भी नहीं किया कि एक तलाश साथ हो चली। पूरे घर में कुछ न कुछ ढूंढते फिरना। कभी कुछ गिराना, कुछ उठाना। कुछ चीजों को मुंह में डालकर स्वाद लेकर परखना…कान उमेठे जाना। फिर वही करना…फिर बड़े होना…तलाश जारी। अनजानी तलाश…जाने क्या ढूंढता है ये मेरा दिल…जैसे ख्यालों में घिर जाना।
Archive for the ‘जिंदगी’ Category
>लाइफ इज अ सर्च
Posted in खोज, जिंदगी on August 29, 2009| Leave a Comment »
>ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है
Posted in जिंदगी, प्यार on June 22, 2009| Leave a Comment »
> िजंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुम्हें चाहूंगा।
तू मिला है तो एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है,
इक $जरा सा $गमे दौरा का भी है ह$क है जिस पर
मैंने वो सांस भी तेरे लिए रख छोड़ी है
तुझ पे हो जाऊंगा कुर्बान तुझे चाहूंगा
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा…
अपने जज़्बात में नग़्मात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे,
मैं तस्सवुर भी जुदाई का भला कैसे करूं
मैंने $िकस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे,
प्यार का बनके निगहेबान तुझे चाहूंगा
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा…
तेरी हर चाप से जलते हैं ख्य़ालों में चिरा$ग
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूं तो फिर ऐ जाने तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी खुश्बू आये
तू बहारों का है उन्वान तुझे चाहूंगा
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा…
>परवीन शाकिर की गली-३
Posted in चिराग, जिंदगी on May 15, 2009| Leave a Comment »
>चिराग मांगते रहने का कुछ सबब भी नहीं
कैसे बताये कि अब तो शब भी नहीं
जो मेरे शेर में मुझसे जियादा बोलता है
मैं उसकी बज्म में इक हर्फ-ए-जेर-ए-लब भी नहीं
और अब तो िजन्दगी करने के सौ तरीके हैं
हम उसके हिज्र में तनहा रहे थे जब भी नहीं
कमाल शख्स था जिसने मुझे तबाह किया
खि़लाफ उसके ये दिल हो सका है अब भी नहीं
ये दु:ख नहीं कि अंधेरों से सुलह की हमने
मलाल ये है कि अब सुबह की तलब भी नहीं
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चेहरा मेरा था निगाहें उसकी
खामोशी में भी वो बातें उसकी
मेरे चेहरे पे गजल लिखती गयीं
शेर कहती हुई आखें उसकी
शोख़ लम्हों का पता देने लगीं
तेज होती हुईं सांसें उसकी
ऐसे मौसम भी गुजारे हमने
सुबहें अपनी थीं, शामें उसकी
ध्यान में उसके ये आलम था कभी
आंख महताब की, यादें उसकी
रंग जोइन्दा वो, आये तो सही
फूल तो फूल हैं, शाखें उसकी
फैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा
आंधियां मेरी, बहारें उसकी
खुद पे भी खुलती न हो जिसकी नजर
जानता कौन जबाने उसकी
नींद इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उसकी
दूर रहकर भी सदा रहती हैं
मुझको थामे हुए बांहें उसकी
जोइन्दा- जिज्ञासु