एक-दूसरे के सामने
ला खड़ा किया था।
ला खड़ा किया था।
एक सी दहशत,
एक सा भय था उनके चेहरे पर
न नाम पता था,
न नाम पता था,
न शक्लें थीं पहचानी हुईं।
उनके पीछे था
उनके पीछे था
गुस्से में उफनाए लोगों का हुजूम
और लगातार तेज हो रहा शोर,
हाथों में थीं नंगी तलवारें, बम, गोले,
आंखों में वहशत
बढ़ता ही जा रहा था हुजूम
उन्होंने पीछे मुड़कर देखा,
बढ़ता ही जा रहा था हुजूम
उन्होंने पीछे मुड़कर देखा,
फिर सामने,
पीछे थी वहशत
और सामने थी
विशाल, गहरी,भयावह नदी,
दर्द की नदी।
शोर बढ़ता ही जा रहा तह
उन्होंने एक साथ लगा दी छलांग
दर्द की उस नदी में
वे एक साथ डूबने लगे
मुस्कुराते हुए।
दर्द की उस नदी में
दर्द की उस नदी में
प्रेम बह रहा था
प्रेम और दर्द एक ही तो बात है।
– प्रतिभा