>तुमने कहा
फूल….
और मैंने बिछा दी
अपने जीवन की
साडी कोमलता
तुम्हारे जीवन में।
तुमने कहा
शूल…….
मैं बीन आयई
तुम्हारी राह में आने वाले
तमाम कांटें
तुमने कहा
समय……
और मैंने अपनी saree उम्र
तुम्हारे नाम कर दी।
तुमने कहा
ऊर्जा…
तो अपनी समस्त ऊर्जा
संचारित कर दी मैंने
तुम्हारी रगों में.
तुमने कहा
बारिश…….
आंखों से बहती बोंडों को
रोककर
भर दिया तुम्हारे जीवन को
सुख की बारिशों से।
तुमने कहा
भूल….
और मैंने ढँक ली
तुम्हारी हर भूल
अपने आँचल से
और एक रोज
तुमने देखा मेरी आंखों में भी
थी कोई चाह
तुमने मुस्कुराकर कहा
तुम्हारा तो है सारा
जहाँ….
मैंने कहा जहाँ नहीं
बस, एक मुठ्ठी भर आसमान
और तुमने
फिर ली नजरें….
Archive for the ‘प्रतिभा’ Category
>मुठ्ठी भर आसमान
Posted in प्रतिभा on November 3, 2008| Leave a Comment »
>मोक्ष
Posted in प्रतिभा on August 26, 2008| Leave a Comment »
>इसी काया में मोक्ष
बहुत दिनों से में
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
इसी से तो मिलना था
पिचले कई जन्मो से।
एक ऐसा आदमी जिसे पाकर
यह देह रोज ही जन्मे रोज ही मरे
झरे हरसिंगार की तरह
जिसे पाकर मन
फूलकर कुप्पा हो जाए
बहुत दिनों से में
किसी ऐसी आदमी से मिलना
चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
अगर पूरी दुनिया
अपनी आँखों नही देखिये
तो भी यह जन्म व्यर्थ नही गया
बहुत दिनों से मैं
किसी को अपना कलेजा
निकलकर दे देना चाहता हूँ
मुद्दतों से मेरे सीने में
भर गया है अपर मर्म
मैं चाहता हूँ कोई
मेरे paas भूखे शिशु की तरह आए
कोई मथ डाले मेरे भीतर का समुद्र
और निकल ले sare रतन
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से
मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही
भक्क से बार जाए आँखों में लौ
और लगे की
दिया लेकर खोजने पर ही
मिलेगा धरती पर ऐसा मनुष्य
की paa गया मैं उसे
जिसे मेरे पुरखे गंगा नहाकर paate थे
बहुत दिनों से मैं
जानना चाहता हूँ
कैसा होता है मन की
सुन्दरता का मानसरोवर
चूना चाहता हूँ तन की
सुन्दरता का शिखर
मैं चाहता हूँ मिले कोई कोई ऐसा
जिससे मन हजार
बहारों से मिलना चाहे
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना
चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
करोड़ों जन्मो के पाप मिट गए
कट गए सरे बंधन
की मोक्ष मिल गया इसी काया में …..
ye कविता दिनेश कुशवाह की है ।